व्यर्थ बातें और खर्च छोड़ो, कुछ सोचो


अजकल हर व्यक्ति भ्रष्टाचार को ही देश के धीमें आर्थिक विकास का दोषी ठहराने लगता है, हां भ्रष्टाचार को काफ़ी हद तक दोषी ठहराना ठीक है पर जहां ये एक सच्चाई है कि आज देश में भ्रष्टाचार बहुत बढ चुका है तो वहीं एक बात ये भी है कि आज युवा अपनी राह भटक चुका है।
आज भारत में युवाओं की संख्या लगभग 56 करोड है जिनमें से नशे की लत से लगभग 30 से 35 करोड युवा पीडित है, जो एक बडा संकेत है और एक बडा कारण है भारत के आर्थिक विकास को एक तैज गति ना मिल पाने का। अगर मनोविग्यानिक द्रष्टीकोंण से देखा जाये तो नशा एक ऐसा पदार्थ है जो मनुष्य की सोचने की शक्ति को सीमित कर देता है और उसकी रचनात्मता को खत्म करके उसकी सही और गलत समझने की क्षमता को घटा देता है। जिससे वह ना ही कुछ अपने लिये ढंग से सोच पाता है और एक द्रण और सटीक फ़ैसला ले पाने में भी असमर्थ रहता है। जिससे साफ़ पता चलता है कि वह देश के बारे में कभी सोच ही नही पाता।
जब देश की जनसंख्या का युवा के रूप में देश का भविष्य कहा जाने वाला भाग ही ढंग से सोच नही पायेगा और एक तर्कवादी सोच रखने में असमर्थ रहेगा तो कैसे एक देश तैज गति से आर्थिक विकास की सीढीयां चढ पायेगा?
आज भारत का लगभग 70 करोड नागरिक गांवो में निवास करता। तहलका पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार हम कहें तो  गांवो में रहने वालो की आमदनी का लगभग साठ फ़ीसदी नशा-पत्ति पर खर्च होता है और इस साल केवल राजास्थान में ही लगभग एक लाख लोगो ने ही शराब के ठेके खोलने के लिये अर्जी लगाई है। इन आंकडो से साफ़ झलकता है कि जनसंख्या का एक बडा भाग नशे की लत में डूब चुका है। अगर भारत को तैज गति प्रदान करनी है तो पहले लोगो के लड़खड़ाते पैरों को मजबूत बनाना होगा। क्योकिं जो खुद लुड़कते हुये चलते हों वो क्या इस देश को सम्भालते हुये विकास को एक तैज गति प्रदान करेंगे!

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