भारत-पाक के मुद्दे पर एक नजर


भारत-पाक दोस्त एक ख्वाब

इतिहास गवा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच एक लम्बे समय से चल रहे विवादो को दोनो देशो के मुख्याओ ने कई बार सुलझाने की कोशिश की होगी और कर भी रहे हैं। लेकिन यहां एक सवाल जरूर जहन में आता है कि भारत-पाक के बीच विवादो का सिलसिला क्या कभी थमेगा? या ये खटास दोनो देशो के बीच यूही बरकरार रहेगी?
आज की अगर हम बात  करे तो मुश्शरफ़ से लेकर गिलानी तक कई बेठके हुईं लेकिन इनका कोई संतोषजनक परिणाम देखने को नही मिला। मै अपने मत अनुसार यहां कहना चाहुगां की भारतीय मुख्या पाकिस्तानी मुख्याओं के  सामने सीधे-सीधे अपनी बात कॊ स्पष्ट रूप से  क्यों नही रखते? या पाकिस्तान के नेत्रत्व करने वाले मुख्या ही अपनी बात स्प्ष्टता से  क्यों  नही रखते? जिससे दोनो देशो के बीच की ऎतिहासिक दिवार  कॊ हमेशा के लिये हटाते हुये कशमीर मुद्दा खत्म किया जा सके और रिश्तो में मिठास की शुरूआत हॊ। हाल ही में क्रिकेट विश्व-कप के दोरान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ़ रजा गिलानी के साथ भारतीय प्रधानमंत्री डा० मनमोहन सिहं के बीच बातचीत के दोरान जो भी निष्कर्ष और विचार सामने आये उससे कतई नही लगता कि दोनो में से किसी भी देश ने रिश्तो में मिठास लाने के लिये कोई स्पष्ट कदम उठाया हो या अपनी बात को स्पष्टता से रखा हो। इन बातो से हर भारतीय के मन में एक सवाल घर जरूर कर गया होगा कि “क्या ऎसे ही हर साल दर साल बेठके चलती रहेगीं और अपनी स्पष्टता से बात ना रखते हुये दोनो देश एक दूसरे के केदीयों को रिहा करते रहेगे?”  या ये कहीये कि दोनो देश कहीं ना कहीं एक संदेह को पाले हुये है कि अगर उसने अपनी बात स्प्ष्ट रूप से रखी तो इससे दूसरा देश उस पर हावी हो सकता है। खेर जो भी हो लेकिन बात जो करनी होती है वह तो स्प्ष्टता और सटीक रूप से  रखी नही जाती बल्कि आतंकी हमलो या दोनो देशो के भीतर हुये आतंकी घुसपेठ या कांडो तक ही चर्चा सीमित रह जाती है।

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