महगांई की आंधी थमने वाली नही, लेकिन संयम रहा तो जरूर थमेगी


एशिया आर्थिक सतर्कता रिपोर्ट की माने तो अभी महंगाई थमने वाली नहीं है|  लगातार कच्चे माल की ऊची कीमतों की मार भारत में सभी बड़ी कम्पनियों को झेलनी पड़ रही है| जिससे उपभोक्ताओ के सामने ये समस्या आ सकती है की वस्तुओ के दाम और ऊपर चढ़ सकते है| यानी जो मुद्रास्फीति की दर 8.6 प्रतिशत पर अभी तक है वो अब और ऊपर 9  फीसदी तक या इससे ज्यादा बढ़ने पर मजबूर होने वाली है| क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक बढती हुई लागतो का प्रभाव पूरी तरहं उपभोक्ताओ तक अभी नहीं पहुच पाया है| मेरी जानकारी के मुताबिक कई नामी कम्पनीयां कच्चे माल की कीमत ऊची होने के चलते वस्तुओ के दाम बढ़ा सकती है|  कीमत स्तर 8.6 प्रतिशत पर ही बना रह सकता है या इससे  उपर भी जा सकता है, लेकिन अभी हालिया में कच्चे माल की ऊची कीमतों के चलते लागतो में बढ़होतरी के बने  रहने के कारण महंगाई आठ फ़ीसदी से नीचे जाएँगी इसकी अभी कोई गुंजाइश ही बनती दिखाई नहीं दे रही है|  वहीँ रिजर्व बैंक भी महंगाई दर को नियन्त्रित करने के लिये तरहं -तरहं के अनुमान लगा रहा है, हलाकि पिछ्ले वर्ष का आठ प्रतिशत महगांई दर रहने वाला अनुमान व्यर्थ ही साबित हुआ है। आरबीआई अपनी मोद्रिक नीतियो में परिवर्तन कर मेहगांई को काबू में करने का प्रयास करने जा रहा है। कुछ विशेष जानकारीयों की माने तो आरबीआई अपनी नीति में परिवर्तन कर रेपो दरो में, जो अभी 6.75 प्रतिशत पर बनी हुई है, उसमें एक फ़ीसदी तक की बढहोतरी करने की सोच रहा है। ऐसे में साख की स्रजनात्मक्ता में कमी आयेगी और साख पर ब्याज दरो में व्रद्धी होना लाजमी हैं।
भारत में जिस तेजी से 2010 की मन्दी के बाद से ही महगांई दर में जो व्रद्धी हुई है इसका सटीक अन्दाजा महगांई की मार झेल रहे उपभोक्ताओ से ज्यादा शायद ही कोई लगा पाये। यहां सवाल ये है कि क्या थम सकती है महगांई की आंधी?, हा.. महगांई की आंधी जरूर थम सकती है पर हमे थोडा सयंम रखने की अवश्यकता है। सयंम तो हम रखे ही साथ ही अपनी बचत भी बनाये रखे। जिससे मुद्रास्फ़ीती से सही तरहं से निपटने की एक क्षमता प्रदान होगी।
यहां ध्यान देने योग्य बात ये है कि महगांई या मुद्रास्फ़ीती हमारे आर्थिक चक्र का ही परिणाम होता है और आर्थिक चक्र या अगर अपनी भाषा में कहा जाये तो एक आर्थिक तराजू को संतुलित बनाये रखने में सिर्फ़ सरकार ही नही बल्कि देश का हर नागरिक भागीदार होता है। दूसरी ध्यान देने योग्य बात ये है कि अर्थव्यवस्था के इस तराजू या आर्थिक चक्र मे संतूलन स्थापित करने के लिये कभी-कभी महगांई या कीमते बढाना जरूरी भी हो जाता है। और ये सरकार खुद नही करती बल्कि आर्थिक चक्र की ऐसी मांग होती है कि सरकार अर्थव्यवस्था में संतुलन लाये। जिसके चलते सरकार को देश में चल रहे आर्थिक चक्र या कहीये आर्थिक तराज़ू को दोनो तरफ़ से बराबर करने की बहुत ही ज्यादा अवश्यकता महसूस होने लगती है। हां आज भ्रष्टाचार ने इस आर्थिक चक्र की पूरी तरहं कमर ही तोड डाली है जिसके कारण व्याय या खर्च ज्यादा और संतुष्टी या लाभ बहुत कम सा लगने लगा है। पर सोचने वाली बात ये है कि कब तक हम भ्रष्टाचार और भ्रष्ट सरकार का रोना रोते रहेगें। सजा तो जरूर मिलनी चाहीये “कर चौरी” और भ्रष्टाचार करने वालो को, परन्तु अपना सारा ध्यान एक तरफ़ ही रखने का क्या ओचित्य या फ़ायदा है। सोचो कितना बढिया होगा कि एक तरफ़ भ्रष्टाचारीयों पर कार्यवाही होती रहे और दूसरी तरफ़ हम देश में आर्थिक संतुलन बनाये रखने में अपनी अतुल्य भूमिका निभाते रहे।
ये गीत तो सुना ही होगा कि “हद से ज्यादा तुम किसी से प्यार नही करना”, इस गीत मे एक नीति छुपी है, तो यही नीति आर्थिक चक्र को काबू करने में काफ़ी हद तक कारगर भूमिका निभा सकती है। कहने का तात्पर्य ये है कि हद से ज्यादा किसी एक ही चीज पर व्याय करते हुये उपभोग नही करना चाहिये। जितना हो सके जो दो या ज्यादा चीज हम आरम्भ से ही लेते आये है उन पर बराबर-बराबर का ही व्याय करे क्योकि अगर महगांई को देखते हुये एक चीज से तुरन्त हम दूसरी चीज पर ज्यादा व्याय करने लगते है जिससे एक चीज की बिक्री कुछ समय के लिये तो इतनी होने लगती है कि उत्पादक और करमीयों को पहले के मुताबिक दोगुना-चौगुना काम करना पड जाता है। जिससे उत्पादकता में कमी आने लगती है। वहीं दूसरी वस्तु की बिक्री में अचानक से इतनी
गिरावट आ जाती है कि जो उत्पादक पूरे दिल और कुछ कर गुजरने की अपनी क्षमता से लागत लगाकर उत्पादित चीजो को हम तक पहुचाने के लिये पूरी व्याय करने की ताकत झोंक देता है ये सोच कर की उसको कुछ तो लाभ मिलेगा। पर उसको अपना लाभ तो क्या लगाई हुई लागत भी वसूल नही हो पाती। जिससे उत्पादन की लागत बढ जाती है और उत्पादक को मजबूरन उत्पादित चीजो की कीमते बढानी पड जाती हैं। फ़िर बाजार का क्या हाल होता है इसका पता हमे तब चलता जब महगांई डायन हम उपभोक्ताओं की कमर ही तोड़ डालती है।  
अन्त में, मै अर्थशास्त्र और मनोविग्यान का छात्र होने के नाते यही कहुगां की वैसे तो बहुत से ऐसे कारक हैं जिससे मुद्रास्फ़ीती की दर ऊची बनी हुइ है लेकिन इस लेख को ध्यान में रखते हुये हम सभी द्वारा एक अच्छा प्रयास किया जा सकता है आर्थिक संतुलन बनाये रखने में। जो काफ़ी हद तक कीमत, मांग और पूर्ती तथा रोजगार के स्तर में संतुलन बनाये रखने के साथ-साथ महगांई पर भी नियन्त्रण कर पाने में एक सफ़ल प्रयास सिद्ध हो सकता है।

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